गुनाहे अज़ीम

आज फिर हुई बारिश, 
आज फिर अपने आँसू छुपाए हमने।
ज़िंदगी को हमारी लग गयी किसी की नज़र, 
आज फिर ख़ुशी के झूठे किससे सुनाए हमने।।

खुदा ने नवाज़ा है हर किसी को किसी बकशीश से, 
आज फिर इल्लतज़ा को अपनी इंतज़ार में पाया हमने।।
सोचा था के मना लेंगे दो त्योहार साथ में सभी, 
अपनी छोटी सी दुआ को बड़ी सी कतार में पाया हमने।।

हुआ होगा कोई गुनाहे-अज़ीम हमसे, 
की यूँ अपने को सासों के लिए तड़पता पाया हमने।
तुम रहो ख़ुश के है तुम्हारे पास है संसार का सबसे बड़ा तोहफ़ा, 
आज फिर अपनी आँखों को “माँ” के लिए रोता पाया हमने।।

.... दिल ने फिर आज एक तमन्ना की, आज फिर दिल को हमने समझाया।

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