नया साल पुरानी यादें

ज़माने में फिर नया साल नया समय नया उत्साह सा है
फिर भी ना जाने क्यूँ मुझमें मेरा मन भुझा सा क्यूँ हैं
है वही रात सितारों सी जगमग हवा में ख़ुमारी भी वैसी सी है
ढूंढ़ता एक किनारा सा मेरा मन बिना पतवार नाव सा क्यूँ है

करता है मेरा भी मन की यूँ नाचूँ गाऊँ ज़माने की तरह
फिर ना जाने क्यूँ आँखों उतर आता ये सागर सा क्यूँ है
नयी उमंगों नयी उम्मीदों में लिपटा नाच रहा ज़माना है
ढूंढ़ता अपनी सासों को मेरा वर्तमान अधूरा सा क्यूँ है

एक ज़माने में हुआ करती थी खनक मेरी भी हर बात में
हुआ करती थी सर्दी में भी ख़ूबसूरत और मुबारक मेरी रातें 
एक माँ थी कभी मेरे भी पास में
बस... इतनी सी ही बात है, एक माँ थी कभी मेरे पास में।