माँ के बिना एक साल

कहते हैं मन कि पुकार सुनकर तो गोविंद भी चले आते हैं,
फिर पुकारते पुकारते साल बीत चला माँ क्यूँ नहीं आती।
कहीं बात सत्य तो नहीं, माँ गोविंद से भी बड़ी है?
और अगर सत्य है तो फिर गोविंद ने माँ छीनी कैसे?

सवाल और सवालों के जवाब, मिलेंगे नहीं बस शून्य है
ताकते हुए बीत गया है उस शून्य को पूरा साल
हाँ माँ को गए एक साल हो गया है,
हाँ माँ को पुकारते एक साल हो गया है।

ना आँसू रुके हैं अभी और ना ही सिसकियाँ ही रुकी हैं
बात बे बात बस बह चलते हैं ये, 
ना जगह देखते हैं ना नज़रा, बड़े अजीब हैं
कल की ही बात है, कोई बोला माँ आयी हैं, और ये बह चले

इसकी माँ आयीं, उसकी भी आयीं, 
हिन्दी, तमिल, तेलुगु, पंजाबी सबकी आयीं
जेठ लगा है अमेरिका में, ऐसे में माँ आती हैं कहा किसी ने
मैंने बस अपने आँसुओ को रोका क्यूँकि मेरी नहीं आएगी अब।

बैठा हूँ इंतेज़ार में, बोलेंगे जहाज़ में चढ़ने का समय हुआ है
समुन्दर पार करके आऊँगा उसी जगह वापस
माँ ने छोड़ा था जिस चरमण्यवती के तट पर वहाँ वापस,
देखूँगा शायद माँ वहीं हो,ना होगी पता है पर अगर हुई तो?

एक ख़याल

हर बार कुछ थोड़ा सा रह जाता हूँ
कोशिश करता हूँ समेट लेने की
फिर भी छूट जाता है मेरा कुछ तेरे कुछ के साथ
मिल जाता है एक बने रहने के लिए
ना बड़ा ना छोटा कोई भेद नहीं
शायद, नहीं यक़ीनन, हमारी तक़दीरें
मिली जुली है कुछ इसी तरह
शायद मुझमे कुछ तेरा है, शायद तुझमें कुछ मेरा है।