दो साल

ना जाने क्यूँ ऐसा भी संसार में यूँ होता है
बात बे बात ये मन बस यूँही भर भर रोता है

रोता है जब बच्चा तो दौड़ कर माँ उसे चुप कराती है
जाने क्यूँ वही माँ बहुत रोने पर अब हमारे पास नहीं आती है

सिखाया गया कि कुछ भी हो माँ कभी ख़फ़ा नहीं होती
फिर ऐसा क्या हो गया मुझसे कि माँ अब बात नहीं करती

रोता हूँ अक्सर रात को बैठ कर पुकारता हूँ पूरे मन से
नहीं आती फिर भी कुछ कमी ही होगी मेरे अंतहमन में

दो साल हो गए हैं माँ अब तो कहीं यूँही मिल जाओ आके,
अब तो किलकारियाँ भी भरने लगी होगी आप किसी के आँगन में, 

पता नहीं मैं आपको याद भी रहूँगा की नहीं, 
बस मिलो कभी किसी और स्वरूप में तो देख भर लेना,

 ज़रूरी नहीं प्यार ही करो, बस कभी एक बार फिर से मिल ही जाना, 
नया संसार होगा अब आपका, घर, परिवार, मित्र, स्वजन, सभी नए, 

बस एक बार अगर मिलो तो देख भर लेना।
 मैं तो शायद इतना क़ाबिल नहीं की पहचान सकूँ आपको, 

आप तो मॉ हो, आप ही पहचान लेना, गले ना लगो, 
ना ही पुचकारो बस इतना ही काफ़ी होगा की आप मुस्कुरा भर देना।

नया साल पुरानी यादें

ज़माने में फिर नया साल नया समय नया उत्साह सा है
फिर भी ना जाने क्यूँ मुझमें मेरा मन भुझा सा क्यूँ हैं
है वही रात सितारों सी जगमग हवा में ख़ुमारी भी वैसी सी है
ढूंढ़ता एक किनारा सा मेरा मन बिना पतवार नाव सा क्यूँ है

करता है मेरा भी मन की यूँ नाचूँ गाऊँ ज़माने की तरह
फिर ना जाने क्यूँ आँखों उतर आता ये सागर सा क्यूँ है
नयी उमंगों नयी उम्मीदों में लिपटा नाच रहा ज़माना है
ढूंढ़ता अपनी सासों को मेरा वर्तमान अधूरा सा क्यूँ है

एक ज़माने में हुआ करती थी खनक मेरी भी हर बात में
हुआ करती थी सर्दी में भी ख़ूबसूरत और मुबारक मेरी रातें 
एक माँ थी कभी मेरे भी पास में
बस... इतनी सी ही बात है, एक माँ थी कभी मेरे पास में।