एक ख़याल

हर बार कुछ थोड़ा सा रह जाता हूँ
कोशिश करता हूँ समेट लेने की
फिर भी छूट जाता है मेरा कुछ तेरे कुछ के साथ
मिल जाता है एक बने रहने के लिए
ना बड़ा ना छोटा कोई भेद नहीं
शायद, नहीं यक़ीनन, हमारी तक़दीरें
मिली जुली है कुछ इसी तरह
शायद मुझमे कुछ तेरा है, शायद तुझमें कुछ मेरा है।

No comments: