"रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ"
Here is to you all...
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ ।
रंजिश=enmity
पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ ।
मरासिम=agreements/relationships, रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया=customs and traditions of the society
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ ।
सबब=reason, ख़फ़ा=angry
कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मुहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ ।
पिन्दार=pride
एक उम्र से हूँ लज़्ज़त-ए-गिरिया से भी महरूम
ऐ राहत-ए-जाँ मुझ को रुलाने के लिए आ ।
लज़्ज़त-ए-गिरिया=taste of sadness/tears, महरूम=devoid of, राहत-ए-जाँ=peace of life
अब तक दिल-ए-ख़ुश’फ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें
ये आख़िरी शम्में भी बुझाने के लिए आ ।
दिल-ए-ख़ुश’फ़हम=optimistic heart, शम्में=candles
That’s great poetry ! Magnificient expression of melancholy ! And Runa Laila’s silken voice just weaves magic…This was also sung by Mehdi Hasan but was immortalized by Runa Laila. I like the one sung by Mr. Mehdi Hasan sahab over the one sung by Runa laila, I dont know when and i just dont remeber where i heard this for the first time, but since that day this has been my most favorite ghazal.
For you all...
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